भारत के आर्थिक भविष्य को बनाने में टेक्नोलॉजी की भूमिका

भारत के आर्थिक भविष्य को बनाने में टेक्नोलॉजी की भूमिका

पिछले दस सालों में, भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनकर उभरा है। इस दौरान हमारी जीडीपी लगभग दोगुनी होकर ३.५ ट्रिलियन डॉलर हो गई है। यह विकास हमारी मजबूती और क्षमता का संकेत है, खासकर वैश्विक चुनौतियों के बावजूद। हम विकसित भारत के लक्ष्य के साथ एक नए युग में प्रवेश कर रहे हैं। अगले २३ साल, २०४७ तक, हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। अगर हम अपनी आर्थिक विकास दर को ८% से बढ़ाकर १२% कर लें, तो भारत को ५० ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बना सकते हैं, जिससे समृद्धि और वैश्विक नेतृत्व का नया युग शुरू होगा।

पूरी दुनिया में तेजी से तकनीकी प्रगति हो रही है। खासकर AI, नई ऊर्जा और अन्य उन्नत तकनीकों में तेजी से विकास हो रहा है। ये विकास आर्थिक प्रतिस्पर्धा और भू-राजनीतिक स्थितियों को बदल रहे हैं। हमारे वैश्विक समकक्ष, खासकर चीन, नई तकनीकों में भारी निवेश कर रहे हैं। इसका उद्देश्य पारंपरिक उद्योगों में बदलाव लाना और नए क्षेत्रों को बढ़ावा देना है। इस रणनीति के कारण अनुसंधान और विकास में काफी निवेश हुआ है, जिससे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अच्छी प्रगति हो रही है।

भारत के विकास और प्रतिस्पर्धा में आगे रहने के लिए हमें AI और नई ऊर्जा जैसी तकनीकों को प्राथमिकता देनी चाहिए। ये सिर्फ अलग-अलग सेक्टर नहीं हैं, बल्कि हमारी पूरी अर्थव्यवस्था को बदल सकते हैं। AI उद्योगों में उत्पादकता बढ़ा सकता है, जबकि नई ऊर्जा लागत घटा सकती है और एक हरित भविष्य बना सकती है। इन क्षेत्रों में निवेश करने से आर्थिक दक्षता बढ़ेगी, नई और बेहतर नौकरियां पैदा होंगी, सप्लाई चेन मजबूत होगी, और नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहन मिलेगा। इससे भारत को भविष्य के उद्योगों में विश्व गुरु बनने में मदद मिलेगी और हमारी ५० ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की राह आसान होगी।

यह यात्रा सिर्फ़ आर्थिक विकास से ही नहीं जुड़ी है; यह एक नए भारत के निर्माण की कहानी है। हम सिर्फ़ वैश्विक तकनीक के उपभोक्ता नहीं बनना चाहते, बल्कि एक निर्माता और लीडर बनना चाहते हैं। १९४७ में हमने अपनी राजनीतिक आज़ादी पाई थी। २०४७ में हमें अपनी तकनीकी आज़ादी हासिल करनी होगी । हमें अपनी तकनीकी उन्नति के लिए अपनी खुद की रणनीति बनानी होगी जो हमारी चुनौतियों का समाधान करे और हमारी ताकत का फायदा उठाए। तकनीक का यह उपयोग सिर्फ़ आर्थिक विकास के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव के लिए भी होना चाहिए।

भारत  के  अपने  AI स्टैक का विकास 

भारत की अर्थव्यवस्था अब काफी हद तक डिजिटल हो गई है। लेकिन हमारे मुकाबले अन्य देशों में कंप्यूट तकनीक का इस्तेमाल ज्यादा है। आईटी सेवाओं में हमारी बड़ी सफलता के बावजूद, ३० ट्रिलियन डॉलर की वैश्विक तकनीकी इंडस्ट्री में हमारी हिस्सेदारी केवल १% है। हमारे समकक्ष देशों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) में अपनी क्षमताएं बढ़ाने के लिए तेजी से निवेश बढ़ाया है। उन्होंने अनुसंधान, बुनियादी ढांचे और प्रतिभा विकास में सैकड़ों अरब डॉलर लगाए हैं ।

जैसे-जैसे AI आगे बढ़ेगा, यह इंसान जैसे रोबोट से लेकर दवाओं की खोज और वैज्ञानिक अनुसंधान तक हर क्षेत्र में बदलाव लाएगा। हालांकि, इससे नौकरी के बाजार में भी बड़े बदलाव होंगे और कई मौजूदा कामों को नए कामों से बदल दिया जाएगा।

भारत के लिए आगे बढ़ने का सबसे अच्छा तरीका है दुनिया का सबसे बड़ा AI हब बनाना। इस बड़े लक्ष्य के दो फायदे हो सकते हैं। इससे नयी नौकरियों का अवसर बढ़ेगा  और आर्थिक विकास तेजी से होगा। साथ ही, हमें अपनी सांस्कृतिक पहचान को AI के विकास और उसकी वैश्विक तैनाती में शामिल करने का मौका मिलेगा।

भारत की अनोखी ताकतें - विश्व के सबसे बड़े डेवलपर समुदाय में से एक, वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक सिलिकॉन डिजाइनर, विशाल मात्रा में उत्पन्न डेटा, और दुनिया का  सबसे बड़ा आईटी (IT) उद्योग - हमें एआई में अग्रणी बनाने की स्थिति में लाते हैं । हम भारत को दुनिया के AI महाशक्ति में बदल सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे चीन ने वैश्विक विनिर्माण क्षेत्र में क्रांति ला दी।

भारत का AI के प्रति नजरिया खास होना चाहिए। इसमें हमें AI के तीन मुख्य हिस्सों: डेटा, कंप्यूटिंग क्षमता, और एल्गोरिदम में अपनी विशेषज्ञता का फायदा उठाना चाहिए।

डेटा

भारत दुनिया का २०% डेटा पैदा करता है, फिर भी ८०% डेटा विदेशों में स्टोर किया जाता है, AI में प्रोसेस किया जाता है, और फिर इसे डॉलर में भुगतान करके वापस लाया जाता है। यह स्थिति १८वीं शताब्दी की ईस्ट इंडिया कंपनी की याद दिलाती है, जब भारत से कच्चा माल बाहर ले जाकर उससे बने प्रोडक्ट को महंगे दामों पर बेचा जाता था। आज हमारे डेटा का भी इसी तरह लाभ उठाया जा रहा है। हमें अपने डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) का उपयोग करके गोपनीयता-संरक्षित डेटासेट बनाकर इस ट्रेंड को बदलना चाहिए। हमारी युवा और टेक्नोलॉजी में दक्ष आबादी लगातार बड़ी मात्रा में डेटा उत्पन्न करती रहेगी। इस डेटा को विदेश भेजने के बजाय, हम अपनी DPI की सफलता (जैसे UPI, UIDAI, ONDC) का लाभ उठाकर, अपने सिद्धांतों पर आधारित दुनिया की सबसे बड़ी ओपन-सोर्स आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बना सकते हैं।

कंप्यूट

भविष्य में कंप्यूट स्टैक में AI फैक्ट्रियां (डेटा सेंटर) और आधुनिक फ़ैब में बने AI चिप्स शामिल होंगे। ये AI फैक्ट्रियां बहुत महत्वपूर्ण होंगी, क्योंकि जिन देशों की कंप्यूटिंग क्षमता ज्यादा होगी, वे AI के क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे। अभी, भारत में केवल १ GW डेटा सेंटर क्षमता है, जबकि पूरी दुनिया की क्षमता ५० GW है। अगर हम इसी रफ्तार से चलते रहे, तो २०३० तक अमेरिका में ७० GW, चीन में ३० GW और भारत में ५ GW डेटा सेंटर क्षमता होगी। प्रति व्यक्ति कम्प्यूट खपत भी यही दर्शाता है, भारत १० डॉलर, चीन १०० डॉलर, और अमेरिका १००० डॉलर पर है। हालांकि हमें अभी बहुत आगे बढ़ना है, लेकिन यह विकास के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर भी प्रदान करता है।

अगले दशक में AI के क्षेत्र में लीडर बनने के लिए जरूरी है कि सरकार और इंडस्ट्री AI एप्लिकेशन को तेजी से अपनाएं। हमें डेटा को देश में रखने के नियम लागू करने चाहिए ताकि हमारा डेटा वापस भारत आ सके और ग्लोबल कंप्यूटिंग कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहन मिले। डेटा सेंटर्स के लिए पीएलआई योजनाएं लागू करना, और उन्हें इंटेलिजेंस फैक्ट्री की तरह देखना, हमारी क्षमता को और बढ़ावा देगा। २०३० तक ५० गीगावॉट डेटा सेंटर क्षमता हासिल करने के लिए २०० बिलियन डॉलर की जरूरत होगी। अगर सभी हितधारक इस लक्ष्य को प्राथमिकता देकर मिलकर काम करें, तो यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

भारत पहले से ही सिलिकॉन विकास और डिजाइन प्रतिभा के लिए दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र है। लेकिन विडंबना यह है कि हमारे पास एक भी भारत में डिज़ाइन की गई चिप नहीं है और हम उन्हें आयात करते हैं। अगर इंडस्ट्री चिप डिजाइन प्रोजेक्ट्स में मुख्य भूमिका निभाए और सरकार रिसर्च लिंक्ड इंसेंटिव (RLI) योजनाएं शुरू करे, तो बड़े पैमाने पर चिप डिजाइन को बढ़ावा मिल सकता है। इससे देश में चिप डिजाइनिंग की स्थिति बदल सकती है। हालांकि सरकार और इंडस्ट्री ने भारत में फैब्स लगाने के शुरुआती प्रोजेक्ट शुरू किए हैं, ये अभी पारंपरिक प्रॉसेस नोड्स तक ही सीमित हैं। वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए, हमें भारत में अत्याधुनिक प्रॉसेस फैब्स (३ नैनोमीटर से कम) तेजी से स्थापित करने की जरूरत है। यह सिर्फ एक तकनीकी जरूरत नहीं है, बल्कि एक भू-रणनीतिक जरूरत भी है। इसके लिए AI और कंप्यूटिंग के भविष्य में भारत का स्थान सुनिश्चित करने के लिए एक केंद्रित नीति और पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की आवश्यकता है।

एल्गोरिदम पर अनुसंधान एवं विकास 

जैसे-जैसे AI अनुसंधान तेजी से नियंत्रित  और निजी होता जा रहा है, भारत के पास AI अनुसंधान और विकास में ओपन इनोवेशन का ग्लोबल चैंपियन बनने का अनूठा मौका है। हम इसे भारत में काम करने के लिए विश्व स्तरीय प्रतिभाओं और वैज्ञानिकों को आकर्षित करके, अनुसंधान के लिए बड़े पैमाने पर संसाधन उपलब्ध कराकर और सरकारी प्रोत्साहन देकर हासिल कर सकते हैं। AI के लिए वैश्विक स्तर पर अग्रणी ओपन इनोवेशन प्लेटफ़ॉर्म बनाकर, भारत खुद को AI प्रगति में सबसे आगे रख सकता है और यह सुनिश्चित कर सकता है कि हमारे मूल्य और दृष्टिकोण इस महत्वपूर्ण तकनीक के भविष्य को आकार दें।

इन क्षेत्रों पर ध्यान देकर, भारत अपना खुद का पूरा AI सिस्टम बना सकता है। इससे हमारी आर्थिक उत्पादकता और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता बढ़ेगी और भविष्य में लाखों नौकरियां भी पैदा होंगी। हम ५० ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने और विश्वगुरु बनने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में AI हमारे तकनीकी, आर्थिक और सांस्कृतिक नेतृत्व के लक्ष्य को हासिल करने का महत्वपूर्ण आधार होगा। हमें २०४७ तक ग्लोबल टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री में ५०% हिस्सेदारी हासिल करने का लक्ष्य रखना चाहिए।

भारत की न्यू एनर्जी सप्लाई चेन और टेक्‍नोलॉजी का विकास

न्यू एनर्जी के मानक, जैसे लिथियम जैसे महत्वपूर्ण खनिजों के लिए, अब जीवाश्म ईंधन के खनन और शोधन से उन्नत सामग्री विज्ञान की ओर बदल रहे हैं। यह बदलाव वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य को नया रूप दे रहा है। भारत को इस क्रांति में खुद को सबसे आगे रखना चाहिए।

न्यू एनर्जी का पूरा सिस्टम तीन मुख्य हिस्सों पर टिका है: रिन्युएबल एनर्जी उत्पादन (RE), बैटरी स्टोरेज, और इलेक्ट्रिक वाहन (EVs)। ये हर क्षेत्र भारत के लिए बड़े मौके और चुनौतियां दोनों लेकर आते हैं।

रिन्युएबल एनर्जी का उत्पादन

भारत ने रिन्युएबल एनर्जी में बड़ी प्रगति की है। २०१४ में हमारी रिन्युएबल एनर्जी क्षमता ७२ गीगावाट थी, जो २०२३ में बढ़कर १७५ गीगावाट से ज्यादा हो गई। खासकर सोलर एनर्जी में जोरदार वृद्धि हुई है। सोलर एनर्जी की क्षमता ३.८ गीगावाट से बढ़कर ८८ गीगावाट से ज्यादा हो गई है। हालांकि, हम अभी भी चीन जैसे देशों से काफी पीछे हैं। २०२३ में, चीन ने २१५ गीगावाट सोलर एनर्जी क्षमता स्थापित की। हमें इस बदलाव को तेजी से आगे बढ़ाने और सभी के लिए एनर्जी की लागत कम करने के लिए रिन्युएबल एनर्जी के विकास पर ध्यान देना होगा। प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम्स और सरकारी समर्थन के साथ, हम अपनी रिन्युएबल एनर्जी क्षमता को और बढ़ा सकते हैं, स्वच्छ ऊर्जा को अधिक सुलभ और किफायती बना सकते हैं, और २०३० तक ५०० गीगावाट रिन्युएबल एनर्जी क्षमता के अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।

बैटरी स्टोरेज

रिन्यूएबल एनर्जी को सही मायनों में प्रभावी और २४/७ उपलब्ध कराने के लिए, हमें इसे मजबूत बैटरी स्टोरेज सॉल्यूशंस के साथ जोड़ना होगा। यह ग्रिड स्तर पर, घरों में, और ग्रामीण इलाकों में माइक्रो-ग्रिड के लिए जरूरी है। बैटरी स्टोरेज से भारत के ऊर्जा परिदृश्य में बड़ा बदलाव आ सकता है, जिससे लोग अपनी खुद की बिजली बना और स्टोर कर सकेंगे। फिलहाल, हमारी बैटरी स्टोरेज उत्पादन क्षमता सिर्फ २ GWh है, जबकि चीन की यह क्षमता १७०० GWh है। हमारे नवीकरणीय ऊर्जा ग्रिड को बैटरी स्टोरेज के साथ संचालित करने और हमारे १००% ईवी राष्ट्र बनने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए, हमें १००० GWh क्षमता का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए।

इलेक्ट्रिक वाहन

दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ऑटो बाजार के रूप में, भारत में ईवी (इलेक्ट्रिक वाहन) सेक्टर के लिए बहुत संभावनाएं हैं। हालांकि, भारत में फिलहाल प्रति १००० लोगों पर २०० से भी कम इलेक्ट्रिक वाहन हैं। चीन के ३० मिलियन की तुलना में भारत में प्रति वर्ष केवल २ मिलियन ईवी बेचे जाते हैं। यातायात को सबके लिए सुलभ बनाने की कुंजी इसे इलेक्ट्रिक बनाने में है, जिससे परिवहन लागत में भारी कमी आएगी। २०३० तक, भारत को ईवी-अनुकूल नीतियों को तेजी से लागू करके और सभी प्रकार के वाहनों (दोपहिया, तिपहिया, कार और ट्रक) में इलेक्ट्रिक का इस्तेमाल बढ़ावा देकर दुनिया का सबसे बड़ा ईवी बाजार बनने का लक्ष्य रखना चाहिए। यह बदलाव पर्यावरण को स्वच्छ बनाएगा, उपभोक्ताओं की परिवहन लागत कम करेगा और अर्थव्यवस्था के कुल लॉजिस्टिक्स खर्च को भी घटाएगा। सही प्रोत्साहनों के साथ, भारत २०३० तक ५० मिलियन इलेक्ट्रिक वाहन बना सकता है।

वर्तमान में, सौर उत्पादन, लिथियम सेल उत्पादन और ईवी मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े न्यू एनर्जी इकोसिस्टम का ९०% हिस्सा चीन में है। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। दुनिया को चीन के विकल्प की जरूरत है। अगर हम इस इकोसिस्टम के विकास पर जोर देकर और अपनी खुद की तकनीक और सप्लाई चेन विकसित करें, तो हम अपनी अर्थव्यवस्था को अधिक ऊर्जा-कुशल बना सकते हैं। साथ ही, हम अपस्ट्रीम मैन्युफैक्चरिंग और सप्लाई चेन इकोसिस्टम भी बना सकते हैं, जिससे लाखों नौकरियां पैदा होंगी और इंडस्ट्री के लिए जरूरी प्रतिभाओं का विकास होगा। यह बदलाव हमारी ऊर्जा स्वतंत्रता को सुरक्षित करेगा, हमें जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाएगा और आर्थिक विकास को भी बढ़ावा देगा।

हम २०४७ तक एक विकसित भारत बनने की उम्मीद के साथ आगे बढ़ रहे हैं। यह स्पष्ट है कि वैश्विक नेतृत्व के लिए भारत की प्रगति का मार्ग भविष्य की तकनीकों में महारत हासिल करने में है। 

यह प्रयास किसी की बराबरी करने का नहीं है। यह हमारे समकक्षों को पीछे छोड़कर AI, न्यू एनर्जी और अन्य क्षेत्रों में लीडर बनने का है। हमारा लक्ष्य बहुत बड़ा है, जिसमें आधुनिक तकनीक एक नए भारत के निर्माण का महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाती है। यह नवाचार को बढ़ावा देती है, नए रोजगार के अवसर पैदा करती है, और यह सुनिश्चित करती है कि इसका फायदा सभी १.४ बिलियन भारतीयों तक पहुंचे।

जिस तरह हर भारतीय ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका निभाई, उसी तरह अब हमारे तकनीकी भविष्य के निर्माण में हर नागरिक की भूमिका है। हम एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़े हैं। अगला दशक तय करेगा कि भारत एक सच्ची तकनीकी महाशक्ति बनेगा या पीछे रह जाएगा। यह साहसिक कदम उठाने और बड़े सपने देखने का समय है। 

हमें अभी से काम शुरू करना होगा ताकि हम भविष्य का निर्माण कर सकें।